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Brijlala Rohanअन्वेषी

Inspirational

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Brijlala Rohanअन्वेषी

Inspirational

'हिंद का निवासी'

'हिंद का निवासी'

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हिंद का निवासी हूँ, मैं                           

माँ ! हिंदी का संतान, हिंदू हूँ, हिंदुता मेरी पहचान       

मैं गंगा -यमुना- ब्रह्मपुत्र-सिंध,

कृष्णा-कावेरी - गोदावरी की अविरल धारा में,

हिमालय की कोख में पला -बढ़ा थार के धूल -धूप में खेला मैं,

कन्याकुमारी में जल -क्रीड़ा किया।

न मेरी कोई धर्म है, न कोई जाति है, हिंद का वासी हूं,

हिंदू होकर कृत -कृत काल के अभिलाषी हूँ।          


जहाँ नदियों को भी माता का दर्जा मिलता है,

बाल सब गोपाल यहां, बाला भी रूकमण राधा है।              

जहां नर अभी भी राम हैं, नारी में भी सीता हैं।           

हाँ! मैं उसी हिंद का निवासी हूँ।                 

 हिंदू -हिंदी - हिन्दोस्तां से करूं मैं खुद का स्मरण,       

मेरे अहो भाग! कि मेरे इस धरती पर हुआ अवतरण।      

ऋषि - मुनियों की तपस्थली यह,

यह राम - कृष्ण- बुद्ध- शंकर-तुलसी - कबीर की तपस्थली, 

व्यास- वाल्मीकि कालीदास- सुर काव्य भूमि है।                 


चश्मे वाले बापू की सत्य- अहिंसा की कर्म स्थली यह,    

राजेन्द्र- बाबा साहेब- नेहरू - सरदार - भगत की

बलिदान भूमि यह जेपी लोहिया की समाज भूमि यह        

और कितना नाम बताऊं हिंद के सपूतों की कितनी मिसालें पेश की ।

स्वहित को ताख पर रख परहित की राह यही हिंद के सपूतों की चाह।                        

जिसने 'जीयो और जीने दो 'का संदेश दिया,

जो वसुधैव कुटुंबकम का मार्ग अपनाया।

मैं उसी कृत धरती का वासी हूं। 

और क्या बतलाऊं मैं कहां का निवासी हूँ।

गर्व से कहूंगा मैं हिंद का वासी हूँ।।



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