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Asst. Pro. Nishant Kumar Saxena

Abstract Inspirational Others

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Asst. Pro. Nishant Kumar Saxena

Abstract Inspirational Others

अपना भारत

अपना भारत

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खोज रहा हूँ अपना भारत वह माधव का प्यार कहाँ है?

कहाँ गए वे नाते ख़ुशियाँ, वे कौशल्या राम कहाँ है?

नीम तले वह कड़ी दोपहरी, ठंडी-ठंडी छाँव कहाँ है? 

कहाँ गए वे पंगत, कुल्हड़, भोजपत्र, जलपान कहाँ है?


कहाँ गए सावन के झूले, मिट्टी के वे बर्तन भाड़े 

कहाँ गए पत्थर के गुट्टे, कंचे, गुल्ली डण्डे सारे 

वह कागज की नाव निराली, न्योता पानी खेल कहाँ है? 

दादी दादा, बुआ चाचा, नानी घर का प्यार कहाँ है?


कहाँ गई वह मन की शांति, अंदर का संतोष कहाँ है? 

कहाँ गए वे लोग हितैषी, वो लगती चौपाल कहाँ है?

छप्पर में वो लगने वाले उनके कंधे आज कहाँ है?


कहाँ गए वे बाग बगीचे,  कहाँ गए वे ताल तलैया,

कहाँ गई मेले की बंसी, कहाँ गई वह गंगा मैया 

कहाँ गईं वे गरम जलेबी, कहाँ गए होली के उत्सव 

कहाँ गए वे तीज त्यौहारे, कहाँ गए वे गली चौबारे 

छत पर लटकी लौकी का वह गली मोहल्ले बांट कहाँ है


माया की एक दौड़ मची है करतब सभी दिखा बैठे हैं। 

जीवन की समृद्धि लेने मन का चैन गवां बैठे हैं। 

आपस में एक होड़ लगी है, लोक दिखावा नौटंकी है।

नकल बची है बस अब हममें, वह गीता का ज्ञान कहाँ है?


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