नारी शक्ति
नारी शक्ति
बेबस व्यथित बेहाल होकर नारी क्यों बिलखती
लज्जा गंवाकर नारी क्यों मन ही मन सिसकती
बलिदानों की प्रतिमा नारी क्यों हो गई कमजोर
भरा हुआ क्यों विष का प्याला उसके चारों ओर
प्रसव पीड़ा को सहने वाली क्या क्या वो सहेगी
क्या उसकी झोली सदाकाल दुखों से भरी रहेगी
नव दुर्गा का प्रतीक है नारी शौर्य जिसमें समाया
फिर क्यों नारी को हमने इतना कमजोर बनाया
पद्मिनी, लक्ष्मी और सीता गवाही आज भी देती
धर्म की रक्षा के लिए नारी प्राण आहुत कर देती
वस्तु नहीं तूँ वासना की कर खुद की तूँ पहचान
जीवन हो महाजीवन तेरा समझाते तुझे भगवान
निष्प्राण हुई सृष्टि का करना तुझको नव निर्माण
अपनी प्रतिभा का देना है संसार को तुझे प्रमाण
अपने मनोबल को हिमालय से भी ऊंच बनाओ
अपनी दिव्यता की किरणे सारे विश्व में फैलाओ
मातृ रूप धरकर सबको तुम अमृत पान कराओ
भारत देश का खोया हुआ मान फिर से दिलाओ।