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Ajay Yadav

Abstract

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Ajay Yadav

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मधुशाला

मधुशाला

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मन्दिर मस्जिद का मेल करवाती,

कहाँ गई अब वो मधुशाला।

हिन्दू मुसलमान पीते थे संग जो,

ढूँढ रहा हूं मैं वो हाला।

बंट गए हैं अब इंसानों के प्याले,

कहाँ गइ वो प्रीत भरी हाला ।

मिल बैठ पी लें साथ जहां पर,

बनवा दो फिर वो मधुशाला।

न रही अब वो प्रीत दिलों की,

न रही आंखों में अब वो हाला।

डगमग डगमग होते अहम में,

बिन पिए ही अब तो हाला।

तू बता दें कहाँ गए वो साकी,

प्रेम करवाती थी जब मधुशाला।

टूट गए अब वो पैमाने सारे,

बिखर गई अब तो वो हाला।

जहां बैठे हम तुम संग मिलकर,

चलो चलें आज उसी मधुशाला।

पथिक टूट गया अब तो थक कर,

न मिलती उसे वह मधुशाला।

खूनी होली और काली दिवाली,

क्या भूल गए अब तुम वो हाला।

फिर किसी दिन मदिरालय में बैठे,

साथ चला चल अब तू मधुशाला।



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