Ajay Yadav

Abstract

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Ajay Yadav

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कितने अमीर हैं तेरे शहर में

कितने अमीर हैं तेरे शहर में

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कितने अमीर हैं तेरे शहर में तू बता दे,

यहां तो हर बाजार में ग़रीबी बिकती है।


अनगिनत खरीददार हैं यहां बाजारों में,

बेकसूर की इज़्ज़त भी यहां बिकती है।


जेब भर कर निकले हैं गलियों में जनाब,

हर कूचे पर किसी की अस्मत बिकती है।


थोड़ी दूर और चल कर तो देख ये रौनक,

कौड़ियों के भाव यहां बेक़सी बिकती है।


क्या जरूरत है खरीदने की इंसानों को,

चन्द सिक्कों में इंसानियत भी बिकती है।


न भटक दर बदर तू सुकून कि तलाश में,

मोल लगा सके तो हर दर तन्हाई बिकती है।


खरीद ले तू, तेरी पसंद की प्रीत आवारा,

हर सिसकी में यहां वफादारी बिकती है।



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