अरसा
अरसा
एक अरसा गुजर गया
खुद से बात किए,
जानें कहां चली गई
मेरी खामोशियां।
अब तो गुज़र गया,
ख्वाहिशों का दौर भी।
कोशिश तो की थी
अपना अतीत टटोलने की,
तो विरानियों को भी
चीखता पाया।
मुद्दत गुज़र गई
यादों से बात किए,
लब सिल जाते हैं,
जब कल की बात करता हूं।
जानें कहां छूट जाता हूं मैं,
नहीं सोचा था कि
खुद की तलाश में,
इतनी दूर निकल आऊंगा।
फिर भी
खाली हाथ रह जाउंगा ?
अब तो रास्ते भी थक गए हैं,
कदमों से थोड़ा पीछे छूट गए हैं।
और मैं चला जा रहा हूं,
खुद से ही दूर।
अब तो मेरी तस्वीर भी
धुंधली पड़ने लगी है।
यादें भी मद्दम पड़ने लगी है।
शायद, अंतिम ख़ामोशी,
अब इतिहास लिखना चाहती है।
अपने अन्तिम पलों में,
कुछ कहना चाहती हैं।
पर, क्या कोई सुन पाएगा ?