पिघलती जिंदगी
पिघलती जिंदगी
थोड़ी, कल की तस्वीर बन जाती है,
कुछ लम्हों में, सिमट जाती है,
चलते चलते, साथ ग़म ले आई है,
थोड़ी सी जिंदगी, रोज़ पिघल जाती है।
आंसू की बूंद भी, हंस पड़ी थी,
मुस्कुराहटें, बिन कहे रो पड़ीं थी,
कटोरे में, थोड़ी यादें डाल जाती है,
थोड़ी सी जिंदगी, रोज़ पिघल जाती है।
देखा था कल, यादों को रोते हुए,
कुछ उदासियों को भी, खिलखिलाते हुए,
हर मोड़ पर, खुद ही मुड़ जाती है,
थोड़ी सी जिंदगी, रोज़ पिघल जाती है।
जानें कब, सपने पलकों से गिर पड़े थे,
टुकड़े उम्मीदों के, बिखरे पड़े थे,
झूठी आस, मुझे हर बार दे जाती है,
थोड़ी सी जिंदगी, रोज़ पिघल जाती है।
पुरानी बातें, रूठ गईं हैं अब हमसे,
जमाने की, कुछ दूरी ही रही हमसे,
नए जज़्बातों से, यूं ही ठन जाती है,
थोड़ी सी जिंदगी, रोज़ पिघल जाती है।