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Ajay Yadav

Classics

4.1  

Ajay Yadav

Classics

अरसा

अरसा

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यूं ही, एक अरसा गुज़र गया,

जिंदगी का पन्ना, कोरा ही रह गया।

खींची थी, लकीरें कोशिश की,

वो हिस्सा तो, अनदेखा ही रह गया।


ढूंढता ही रहा, मायने लफ्जों के,

अर्थ उनका, अधूरा ही रह गया।

चला था सीखने, मायने जीने के,

वो तो, बिन लिखा ही रह गया।


पढ़ना था जिसे, भावों से,

अधुरा ही, वो एहसास रह गया।

खुद को, समझने की कोशिश में,

हर हर्फ, बिन लिखा ही रह गया।


अब ढूंढता हूं, मैं निशान अतीत के,

वो तो, पन्नों में ही खो कर रह गया।

कैसे सुनाऊं मैं, अपनी कहानी तुझे,

इस दुनिया में, मैं नाकारा ही रह गया।


शब्द टकरा जाते हैं, उलझ कर,

द्वंद्व मन का, अधूरा रह गया।

मत कर कोशिश, मुझे पढ़ने की,

स्याही का बस, निशान रह गया।


जी तो लिया जीवन, मैंने भी,

हाथ में, बस टुकड़ा ही रह गया।

गुज़र गए, उजालों के दौर यूं ही,

वजूद में मेरे, अंधेरा ही रह गया।


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