वाणाघात
वाणाघात
मैं गिरता हूँ, फिर उठता हूँ और गिरकर रोज संभलता हूँ।
दुःख, द्वंद, निराशा, पीड़ाओं के, घृणा, हीनता, अपमानों के,
शिव के जैसे कोटि हलाहल कंठ लगाए फिरता हूँ।
मैं गिरता हूँ। फिर उठता हूँ।
मैं अगणित धोखे खा-खा कर, छल, कपट, क्रूरताओं के भी
बस भीष्म पितामह जैसे वाणाघात चुभाए फिरता हूँ।
मैं गिरता हूँ, फिर उठता हूँ।
जो हृदयों में विष रखकर भी, मीठी बोली से डसें खूब,
ऐसे नागों को जानबूझ मैं दूध पिलाए फिरता हूँ।
मैं गिरता हूँ, फिर उठता हूँ।
सम्मुख कुछ, पीछे छिपे चोर
झूठे नकाब के लोग और
उनसे भी सम्बंधों के रस्से गले फंसाये फिरता हूँ।
मैं गिरता हूँ, फिर उठता हूँ।
कुछ प्रिय हैं, मुझको लोग अति, उद्धारक हो जिनके प्रति।
उनके खातिर लड़ दुनिया से
हर हार छुपाए फिरता हूँ।
मैं गिरता हूँ, फिर उठता हूँ और गिरकर रोज संभलता हूँ।