मैया रोती है
मैया रोती है
ऐ प्यारे देश!
अहो दुर्भाग्य तेरा, पहले यवनों ने लूटा, फिर गोरों ने
और अब अधिकांश नेता लूटते हैं। यही देख मैया रोती है।
जनता धर्म, पंथ, दल, स्वार्थ भक्त है
उसे देश से कोई लेना देना नहीं।
क्रान्ति, परिवर्तन, अधिकार का उन्हें ज्ञान नहीं।
मैया पीड़ित है गुलामी से।
दिशाहीन शिक्षा, खाली पेट,अन्याय, शोषण और बेकारी से।
तेरे बच्चे कराह रहे हैं। खून चूस रहे धनपति उनका।
उधर ये राम, बुद्ध, कबीर, कृष्ण के देश वाले
चोर हो गए, रिश्वत, दलाली, बेईमानी, मिलावट, छल, दुराचार
ये तो जघन्य पाप थे ही,
अब बत्तख की तरह अपनों के खून में तैरते हैं।
यही देख मैया रोती है।
खाली पेट, खाली जेब, पढ़े लिखे बेरोजगारों को
आध्यात्म का ज्ञान क्या दूं?
इनके लिए बस रोटी ही भगवान है।
कुसूर आस्तिकों, भले लोगों का भी है।
ये लड़ना भूल गए हैं, अधिकारों के लिए।
सहते रहते शोषण चुपचाप।
सोंचकर कि भगवान ही सब सही करेगा।
कर्म योग से भ्रष्ट ये सभी,
देश हेतु अपने कर्तव्य से पतित हो चुके,
बस यही देख तो मैया रोती है, नयन भिगोती है।
