STORYMIRROR

NEERAJ SINGH

Classics

4  

NEERAJ SINGH

Classics

रूह भी अब नया पता चाहती है

रूह भी अब नया पता चाहती है

1 min
618

"अपनी कलम से........."


 "रूह भी नया पता चाहती है "


ये ख़ामोश दर -ओ -दीवार कुछ कहती है ,

जुल्म-ओ-सितम की दास्तां बयां करती है।


दफ़्न है कई राज इस चारदीवारी में ,

बेजान दीवारें भी अपनापन जताती है ।


बेवफाई का नजारा भी तो देखा होगा,

सुन कर देखो इनकी सीखे निकलती है।


सिर रखने को कोई कन्धा ना मिला,

यहाँ जो दिखा वो हाथ खुराफाती है।


 अब तो आईना भी झूठ बोलता है ,

बेजान सी सूरत भी सुंदर नजर आती है।


अपना दर्द किसको दिखाएँ नीरज

अब तो हर सांस दर्द से कराहती है।


 खंडहर सा हो गया है यह जिश्म ,

अब तो रूह भी नया पता चाहती है।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Classics