मेरी रूह
मेरी रूह
चल अब रहने दे,
उनकी बातों को ,
दर- ओ -दीवार पर ,
उनके निशां बाकी हैं।
वह मेरे घर का कोना ,
उन्हें याद करता है ,
वो उनका रोना और ,
आंसुओं की बात बाकी है ।
बेशक अब तन्हाई है ,
लोगों का कहना है,
मेरे तो घर में उनके,
पायल की झंकार बाकी है ।
अकेले बैठ उनके साथ,
बातें खूब होती हैं ,
लोगों की नजरों में,
सिर्फ पागल होना बाकी है।
मेरे जहन से मिटती नहीं ,
उनकी हस्ती ही ऐसी है ,
मेरी रूह पर ,
उनकी मौजूदगी बाकी है।
