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NEERAJ SINGH

Abstract

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NEERAJ SINGH

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मेरी रूह

मेरी रूह

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 चल अब रहने दे,

 उनकी बातों को ,

दर- ओ -दीवार पर ,

 उनके निशां बाकी हैं।


 वह मेरे घर का कोना ,

उन्हें याद करता है ,

 वो उनका रोना और ,

आंसुओं की बात बाकी है ।


बेशक अब तन्हाई है ,

लोगों का कहना है,

 मेरे तो घर में उनके,

 पायल की झंकार बाकी है ।


अकेले बैठ उनके साथ,

बातें खूब होती हैं ,

लोगों की नजरों में,

सिर्फ पागल होना बाकी है।


 मेरे जहन से मिटती नहीं ,

 उनकी हस्ती ही ऐसी है ,

मेरी रूह पर ,

उनकी मौजूदगी बाकी है।


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