इक आरजू
इक आरजू
जब
बर्फीले पहाड़ों की
सर्द हवा का झोंका
तीर बन कर लगा
टूटे दिल पर
तब
याद आईं वो
चांदनी रातें
घंटों की थीं मोहब्बत की बातें
जब
जम जम के
बरसी थीं
काली घटाएं
तब
खूब मस्ती में हम
भीगे और नहाए
अब
यादों के
रह गए साए
लाख चाहें तो भूल न पाएं
यह थे बचपन के
अनमोल पल सुहाने
काश फिर से आएं दिल बहलाने।
