कविता
कविता
कविता झूठी थी कसमें झूठे थे वायदे टूटे कांच बनके सब सपने सुहाने अनकही ,अनसुनी सपनों की कहानी नजरों ने कह दी जुबां कह न पाई खुली किताब है यह जिंदगानी हर पन्ने पर लिखी अधूरी कहानी न हम जान पाये न तुम जान पाये कुछ तो था दरमियान हम में ख्यालों में सिमटा कल्पना का फितूर है हर जर्रे में नजर आया बिखरे सपनों का सरूर है
