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सीमा शर्मा सृजिता

Abstract

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सीमा शर्मा सृजिता

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यात्रा वृतान्त

यात्रा वृतान्त

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जब भी पढ़ती कोई यात्रा वृन्तात तो सोचती एक दिन चल दूं 

किसी लम्बी यात्रा पर 

और लिखूं अपना यात्रा वृन्तात 

मगर मेरा घर मेरे मन को 

हमेशा पराजित कर देता 

मैंने सोची थीं कुछ जगहें 

मैंने पता भी किया था 

मेरे शहर से कौन सी बस या ट्रेन 

कितने बजे जाती है 

पक्का मन बनाकर 

मैंने लगाया था एक दिन अपना सूटकेस 

रखे थे कुछ कपडे़, एक डायरी, एक पेन 

वह आज भी लगा रखा है 

उस दिन से आज तक 

न जाने कितनी बसें,

न जाने कितनी ट्रेनें 

दौड़ती रहीं दिन रात 

न जाने कितने यात्री 

करते रहे यात्रायें

न जाने कितने ही लिखे गये यात्रा वृतान्त 

मगर मैं आज तक पहुंच न पाई 

किसी रेलवे या बस स्टेशन तक 

मेरे अंदर की लेखिका का किरदार 

एक बहु ,एक पत्नी, एक मां के किरदार से 

हमेशा हारता रहा 

 इसलिए मैं आज तक लिख न सकी 

कोई यात्रा वृतान्त 

मैंने खूब पढ़ी किताबें और जाना 

अधिकतर यात्रा वृतान्त लिखे हैं पुरुषों ने 

वो निकले थे यात्रा पर बेफिक्र 

क्योंकि उनके घर में थी स्त्री 

काश ! हम स्त्रियां भी निकल पातीं 

उतनी ही बेफिक्री से 

ये सोचकर कि हमारे घर में हैं पुरुष 

और लिख पातीं यात्रा वृन्तात 

  


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