लज्जत इंतजार
लज्जत इंतजार
खो दी हैं रिश्तों ने, अब लज्ज़ते इंतज़ार की
वक़्ते इंतज़ार जो, कभी आँखों में कटा करता था,
अब दिखाई नहीं देता
हर आती - जाती भीड़ में बस वो एक चेहरा ढूंढ़ना
जो ज़िंदगी है हमारी
बार बार बेचैनी से घड़ी के कांटों को देख
मन मसोस ये कहना कि
उफ्फ्फ्फफ्फ़ कितनी धीरे चलती हैं सुइयाँ भी
हर आहट पे पलट के देखना कि कहीं वो आया तो नहीं
कि पत्तों की भी सरसराहट पे भी उसके कदमों की आहट सुनायी दे
रास्ता देखते -देखते उसका; आँखों का पथरा जाना
बहते-बहते अश्कों का सहारा हो जाना
और इस सितम ए इंतज़ार के बाद उसका दीदार,
उफ्फ्फ्फ्फ्फ्फ़ क्या दिलकश कैफ़ियत हुआ करती है फ़िर उस मिलन की,
ये वही जानता है जिसने चखा हो इस लज्ज़ते इंतज़ार को,
और ये इंतज़ार सिर्फ माशूक का नहीं बल्कि हर उस रिश्ते में होता था,
हर उस चीज़ का होता था जिसे शिद्दत से चाहा हो
मगर
अब ये जुनून ए इंतज़ार कही देखने को नहीं मिलता
वो वक़्त जो हक था इंतज़ार का
अब मोबाइल पर बेमतलब यूँ ही फंसा रहता है
और वक़्ते इंतज़ार बहुत आसानी कट जाता है
बिना किसी एहसास के
"ओस"
