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Rajiv Jiya Kumar

Abstract Classics

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Rajiv Jiya Kumar

Abstract Classics

जलो रात भर

जलो रात भर

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पसर रहा तम हर ओर

गूँजती चीख चहुंओर 

इस तम का भी है भोर

बिन मचाए कोई शोर

ढलना तो है इसे हाल हर

पर जलना होगा दीप की भाँति

इस अँधेरे में जगकर रात भर।।


हमने दी सजने यह कायनात

खबर कहाँ होगी ऐसी करामात 

बैठ जन गण की गद्दी पर राजशाही की बात 

छिन जाएगी रोटी दाल और भात

इस घात का प्रतिघात है तय

पर जलना होगा दीप की भाँति

इस अँधेरे में जगकर रात भर।।


घर की अपनी सब पूँजी बेेच

सजा देेंगें वह ऐसी एक सेज

बिंध जाएगा जो जरा भी ठहरा

तार तार होगा सुनो अपना यह सेहरा

सजाना तो इसे है हमें

पर जलना होगा दीप की भाँति

इस अंधेरे में जगकर रात भर।।


ख्वाब सुहाने दिखलाए चुुन चुन कर

आसमां की सैर करी जन ने यह सुन सुन कर

जुमला एक ऐसा उछल कर निकला

जां छलक कर हलक में है अटका

छटेगी हमसे काली छाया

पर जलना होगा दीप की भाँति

इस अंधेरे मे जगकर रात भर।।


कुछ न कहो बस मन की बात सुनो

मिले कुछ न मिले टूटा मन खुद बुनो

यह कौन सा साया है

जन जन भरमाया है

भ्रम को सारे हम मिल भ्रम तोड़ेंगे

पर जलना होगा दीप की भाँति

इस अंधेरे में जगकर रात भर।।


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