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विभांशु 'विदीप्त मनमौजी'

Classics

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विभांशु 'विदीप्त मनमौजी'

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महारास

महारास

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निधि बन जी के तरु शाख सब यूं मस्ती में लहरत हैं 

कृष्ण राधिका के संग मिलकर निधि बन में यूँ महारास करत हैं 


पूछीं गौरा शिव शंकर से, ये क्या लीला श्याम रचत हैं 

जरा हमको भी समझाओ नाथ कैसे ये महारास रचत हैं 


भेद जानने महारास का शिव रूप गोपी का धरत हैं

पहुँच बैठे निधिवन में जहाँ श्याम महारास करत हैं 


कभीबंसी बजाए कभी नाच नचाये 

कभी कमर लचाये कभी लटक जाये 

आगे भागे राधा रानी ,पीछे पीछे श्याम फिरत हैं

कृष्ण राधिका के संग मिलकर निधि बन में यूँ महारास करत हैं 


हर गोपी को निधिवन जी में खुद के श्याम मिलत हैं 

देख दृश्य अद्भुत ये शिव शम्भू अचरज में परत हैं 

जाने कैसी माया ये प्रभु की , कैसी लीला रचत हैं 

कृष्ण राधिका के संग मिलकर निधि बन में यूँ महारास करत हैं 


कहत मनमौजी राधा श्याम यूं निधि बन में रास करत हैं 

राधा साधे मुरली हाथों में, श्याम राधा का भेस धरत हैं 

प्रेम में राधिका के श्याम यूं करत हैं 

श्याम बने राधिका और राधा श्याम बनत हैं 

पहन घाघरा डाले चुनरी,गालों पर लाली धरत हैं 

कजरारे नैन, होठों पर लाली, श्याम राधा का भेस धरत हैं 


निधि बन जी के तरु शाख सब यूं मस्ती में लहरत हैं 

कृष्ण राधिका के संग मिलकर निधि बन में यूँ महारास करते हैं।


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