वट तुम्हारी रागमयता आज मुझ पर झर रही है। वट तुम्हारी रागमयता आज मुझ पर झर रही है।
कुछ पत्ते गीले दीखते हैं मानो अश्क समेटें खुद में हों कुछ पत्ते गीले दीखते हैं मानो अश्क समेटें खुद में हों
हर दम मेरा हाथ थामे संग-संग चले तेरा साया तेरी हमनवाज़ी पे मैं वारी ओ साहिबा...।। हर दम मेरा हाथ थामे संग-संग चले तेरा साया तेरी हमनवाज़ी पे मैं वारी ओ साहि...
यह अहसास दिलाया है यह अहसास दिलाया है
फिर दूर कहीं जाकर वो रुकता है ठहरता है फिर दूर कहीं जाकर वो रुकता है ठहरता है
एक सवाल है कि इंसानियत कोने में बैठी रोती क्यों है ? एक सवाल है कि इंसानियत कोने में बैठी रोती क्यों है ?