वट तुम्हारी रागमयता
वट तुम्हारी रागमयता
वट तुम्हारी रागमयता ,
आज मुझ पर झर रही है
तन समूचा भीजता है,
मन सुवासित कर रही है।
हरीतिमा श्यामल तुम्हारी,
इन्द्रधनुषों को लजाती
धर प्रलय के शीश पर पग,
बीन जीवन की बजाती
गंधमय वानस्पतिकता,
चर-अचर में तिर रही है
वट तुम्हारी रागमयता ,
आज मुझ पर झर रही है।
सात्विकी मकरंद छाया,
ओढ़नी सी ओढ़ लूं मैं
तव सुमन की सौम्यता से,
मृदुल नाता जोड़ लूं मैं।
नीड़कामी लघु-विहंगिनी
शाख पर तृण धर रही है
वट तुम्हारी रागमयता
आज मुझ पर झर रही है।