पत्ते
पत्ते
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पत्ते
शाख से झड़े पत्ते
खुद भी इतरा रहे हैं
पास खड़ी सुंदरी को देख
मुस्कुरा रहे हैं
टहनी से अलग हो गए तो क्या !
आज भी अपने रंगों से
सबको लुभा रहे हैं
तुमने पास आ
जो मान दिलाया है
हम में भी दिल है
यह अहसास दिलाया है
कल शाख पर
हमसे रौनक थी
आज भी जमीं को
हमने सजाया है ।