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Aditya Narayan Singh

Abstract

4.9  

Aditya Narayan Singh

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क्यों है ?

क्यों है ?

1 min
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हर रात के बाद सुबह होती है

फिर भी यह दुनिया सोती क्यों है ?

डुबकी तो समंदर में मैं लगाता हूं,

फिर तुम्हारे हाथों में यह मोती क्यों है ?


मेहनत तो वह भी हर रोज ही करता है,

फ़िर भिखारी की फटी हुई रोती क्यों है ?

रोज ही पार करता है इस नदी को नाविक

बार-बार यह लहरें कश्ती डुबोती क्यों है ?


फूल नहीं चाहता कि शाख से अलग करे कोई उसे,

कुछ बालाएं उस की माला पिरोती क्यों है ?

बताया जाता है कि संसार तुम्हारा परिवार है,

फ़िर देशों की अपनी सीमाएं होती क्यों है ?


उजाले में रहना तो किसी का शौक नहीं रहा,

फिर घर में उसके चरागों की ज्योति क्यों है ?

कहने को तो भीड़ बढ़ रही है शरीफों की,

एक सवाल है कि इंसानियत कोने में बैठी रोती क्यों है ?


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