क्यों है ?
क्यों है ?
हर रात के बाद सुबह होती है
फिर भी यह दुनिया सोती क्यों है ?
डुबकी तो समंदर में मैं लगाता हूं,
फिर तुम्हारे हाथों में यह मोती क्यों है ?
मेहनत तो वह भी हर रोज ही करता है,
फ़िर भिखारी की फटी हुई रोती क्यों है ?
रोज ही पार करता है इस नदी को नाविक
बार-बार यह लहरें कश्ती डुबोती क्यों है ?
फूल नहीं चाहता कि शाख से अलग करे कोई उसे,
कुछ बालाएं उस की माला पिरोती क्यों है ?
बताया जाता है कि संसार तुम्हारा परिवार है,
फ़िर देशों की अपनी सीमाएं होती क्यों है ?
उजाले में रहना तो किसी का शौक नहीं रहा,
फिर घर में उसके चरागों की ज्योति क्यों है ?
कहने को तो भीड़ बढ़ रही है शरीफों की,
एक सवाल है कि इंसानियत कोने में बैठी रोती क्यों है ?