अंतराल
अंतराल
तुम्हारे हंसी और खामोशी के बीच में,
जो एक छोटा सा समय अंतराल है
उसमें एक कहानी की रचना करता हूं मैं।
उस कहानी में चांद तारे तोड़ने
और तुम्हारे लिए दुनिया से लड़ जाने जैसी
छोटी और पुरानी घटनाएं नहीं होती।
आसमान से नफरतों की आग बरसती है,
और भावनाओं की नदियां सूख जाती हैं।
उस कहानी में घर के दीवारों की पपड़ीयों के उधड़ जाने से
एक जानी-पहचानी तस्वीर बनती है।
किरदार खुद को सुदूर किसी दिशा के विरान,
मरुस्थल में उगे हुए नागफनी को निहारता हुआ
उससे अपनी तुलना करता है।
और इसी छोटे समय अंतराल में, मेरी चेतना, जगा देती है,
मेरे अंदर सो रहे प्रेमी को,
और इस प्रेमी की मनोदशा, शब्दों के जरिए बाहर आती है,
जिससे श्रृंगार की कविताओं का जन्म होता है।