अपराधी
अपराधी
एक अपराधी को प्रेम हो सकता है,
अपनी पत्नी , मां या बच्चों से
मैं चुनूंगा अपराधी कहलाना, ना कि चरित्रहीन
क्योंकि मैंने प्रेम किया है
इसीलिए,चरित्रहीन नहीं हो सकता मैं।
मैं नहीं चाहता समाज को बदलना,
क्योंकि अपराधी और बुद्धिजीवी में फर्क है।
मैंने भी इस प्रेम में सदीयों से चले आ रहे,
टोटके ही आजमाएं है क्योंकि,
समझदारी और नयापन प्रेमी के पात्रता के विरुद्ध है।
मैंने भी वही, पीछा किया, फिर इशारे,
फिर बेनामी पत्र लिखे, कभी न देने वाले उपहार खरीदे,
बात करने कि असफल कोशिश,फिर दोस्तों से सलाह,
और अंततः प्रस्ताव....उसकी अस्वीकृति भी मुझे,
निरपराध नहीं बना सकी,अगर कोई पूछे मेरी आख़िरी ख्वाहिश,
तो मैं चाहूंगा कि,वो, आए मेरे घर, मेरे मरने पर
उसका कोई अपना उसपे लिखीं कविताएं सुनाए उसे,
और फ़िर मेरी कविताएं अमर हो जायेंगी।

