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Aditya Narayan Singh

Abstract Classics

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Aditya Narayan Singh

Abstract Classics

तुम्हारे जाने के बाद

तुम्हारे जाने के बाद

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तुम्हारे जाने के बाद तुमपर होने वाले चर्चे में, 

सबसे पीछे खड़ा रहूं और अपनी बारी

आने पर तुम्हारी तारीफ कर , 

तुम्हारे चरित्र की सारी भ्रांतियां दूर कर दूं

और तुम्हारा होने का दवा पेश करूं

तो क्या अपनाओगी तुम मुझे । 


तुमको आश्वासन देता हूँ की अब नहीं होगी

उत्सुकता दरवाजे को खोलने जाते वक़्त

और रास्तों पर चलने के दौरान

भी अपने पैरों में तेजी लाऊंगा मैं। 


अगर तुम्हारे बाद किसी और का आलिंगन भा गया मुझे

फिर भी तुमको दिए गए उपमान तुम्हारे लिए ही आरक्षित होंगे। 

तुम्हारे स्मृति के तौर पर दालान के पिंजरे में लटकता वो तोता,

उसको आज़ाद करने की तारीख रोज बदल दी जाती है। 


तुम्हारे बाद मुझमें और सब्जी मंडी से हटके बैठे

उस चर्मकार में कोई फर्क नहीं है क्योंकि, 

मैं सम्बन्धो के टूटने की पहले की संभावनाओं का

प्रतिनिधित्व करता हूँ और वो चप्पल के टूटने के पहले की सम्भावनाओं का।

 तुम्हारे बाद मैं माँ से बिछड़ा हुआ वो हिरन का बच्चा हूं

जो पेड़ पौधों के जंगल में नहीं इंसानो के जंगल में खो गया है। 


यदि किसी पुरुष को मुँह लटका कर चलते हुए

देखो तो समझना की वो मैं हूँ

और तारीफ करना में भीड़ में अकेले चलने के हुनर की।

 विडंबनाओं से भरा ये शहर मेरा और वीरान होती इसकी गलियां, 


और मुहल्लों में फैला परेशानियों का

रेगिस्तान और उसमे भटका हुआ मैं, 

अगर टकरा जाऊं किसी घने पेड़ से,

यो क्या इसका मतलब ये होगा की तुमने अपना लिया है मुझे ?


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