प्रेमगीत
प्रेमगीत
अगर मैं अब नहीं लिख पाता प्रेमगीत तो कारण ये नहीं की तुमसे मोह नहीं रहा मुझे।
चूकि प्रेम करने के जैसे ही प्रेम न करना भी एक परम्परा है
और शायद मैं इसी परंपरा का अनुयायी हूं।
तुम्हारे आलिंगन से वंचित और तुम्हारी श्रेणी से
विमुख एक कवि जिसके ऊपर,
अपनी कविताओं को पालने का बोझ है,
वो प्रकाशमान सुरज को ढकने का प्रयत्न क्यों न करे ?
अगर कविताएं मेरी सिर्फ़ तुम्हारे स्तवन तक परिमित हों तो क्या मुझे प्रसिद्धि मिलेगी ?
मेरे साथ चल रहा हर मुसाफ़िर योग्य नहीं है
तुम पर लिखे गीत सुनने के।
प्रेम से विमुख व्यक्ति अकेले ख़ुद को मार देता है पर जिम्मेदारियों से विमुख इंसान पूरे कुटुंब को।
मेरे भीतर का कवि परिपक्वता की ओर अग्रसर है,
जिसकी प्राथमिकताएं प्रेम नहीं, जिम्मेदारियां हैं,
सच को सच, झूठ को झूठ और पाप को पाप कहने की जिम्मेदारियां।
और यही विमुखता उसको एक अच्छा बाप, सच्चा पति, एक उम्दा इंसान और सच्चाई की वकालत करने वाला पुरुष बनाएंगी।
गर मैं प्रेम लिखूं तो क्या निर्धारित अवधि से अधिक उम्र मिलेगी मुझे ?
गर मैं प्रेम लिखूं तो क्या सारे आरोपों से बरी कर दिया जाएगा मुझे ?
बहुत सारे सवाल है जो मुझे अनुत्तर कर देते हैं और यहीं कारण हैं प्रेमगीत से परहेज़ करने का।