प्रेम की परिभाषा
प्रेम की परिभाषा


कुछ नहीं बचेगा यहां,
वक़्त निगल लेगा सबकुछ,
नदी, पेड़, झरने, रेगिस्तान।
भंग हो जाएगी नैसर्गिकता,
मनुष्य, जानवर, पक्षी, दैत्य सबकी।
क्षीण हो जाएगा स्त्री का सौंदर्य,
यौवन, रूप, प्रेम, मर्यादा, और
ख़त्म हो जाएगा पुरुषों में शौर्य,
आकर्षण और आधिपत्यवाद।
नयी दुनिया बनेगी, सब बदलेगा,
पर नहीं बदलेगी प्रेम की परिभाषा,
और प्रेम में जान लुटा देने की प्रवृत्ति।