नियति का लिखा
नियति का लिखा
रूंदन से नहीं बदल जाता नियति का लिखा
और ना ही बदलते हैं प्रकृति के नियम,
क्रोध व्यक्त कर देने से ।
नहीं बदलती है वस्तु विशेष की परिभाषा,
किसी एक के ज्ञानवान हो जाने से,
और ऐसे ही नहीं बदलती रिश्तो की परिभाषा,
रिश्तो को नकार देने से।
हमारे होने से नहीं फर्क पड़ता दुनिया को,
क्योंकि,
शुरू कर दी है उलटी गिनती,
कल को हमारी जगह लेने वाले ने,
और शुरू कर दी जाएगी उसकी भी गिनती,
हमारे अंत के अगले ही क्षण।
हमारी भूमिका का महत्व होगा,
समुद्र का सिर्फ एक बूंद पानी।
और दे भी दिया गया है ठेका,
हमारे शारीरिक विनाश के लिए।
अगली सदी की पहली तारीख तक,
गर किसी एक को याद रह गए हम, तो ,
कम से कम खुद को अमर मान लूंगा मैं।