तसल्ली
तसल्ली
क्या तुम्हें तसल्ली होगी ?
अगर तुम्हारे आँखो की गहराई,
नाप लूं मैं और साबित करूँ,
तुम बहुत प्रिय हो मुझे।
या फिर तुम चाहोगी,
मेरा अनवरत उसमें डूबते जाना,
जो तुम्हारे प्रति समर्पण का प्रतीक होगा।
क्या मैं गिरवी रखूं,
अपनी कोई प्रिय वस्तु, कोई अंग,
तुम्हारे प्रेम के एवज में।
ठीक उस किसान की तरह,
जो अपना अनाज बेचता है,
बदन को ढकने के लिए।
क्या मैं लिख डालूं ढेरों शायरियां,
नुमाइश में, जिससे ये तय हो,
सिर्फ़ मैं ही तुम्हें समझ पाया हूं।
क्या तब खुश होगी तुम ??