और उस अनुभूति से मेरी गिरती धूमिल होती मनोदशा को नई दिशा मिल गई। और उस अनुभूति से मेरी गिरती धूमिल होती मनोदशा को नई दिशा मिल गई।
होती है जब कोई अनहोनी, प्रतीत अपनत्व सहारा होता है। होती है जब कोई अनहोनी, प्रतीत अपनत्व सहारा होता है।
और इसी छोटे समय अंतराल में, मेरी चेतना, जगा देती है, मेरे अंदर सो रहे प्रेमी को, और इस प्रेमी की म... और इसी छोटे समय अंतराल में, मेरी चेतना, जगा देती है, मेरे अंदर सो रहे प्रेमी को...
चाह कर भी परिधि अपनी तोड़ नहीं पाती ..! चाह कर भी परिधि अपनी तोड़ नहीं पाती ..!
मेरे अपने यूं मुझसे दूर चले गए, मैं जाता देखती रही रोक ना पाई, मेरे अपने यूं मुझसे दूर चले गए, मैं जाता देखती रही रोक ना पाई,
यादों के दरीचे से झांकती, कुछ अविस्मरणीय लम्हों को, यादों के दरीचे से झांकती, कुछ अविस्मरणीय लम्हों को,