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neetu singh

Abstract Romance Others

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neetu singh

Abstract Romance Others

परिधि

परिधि

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तुम्हारी आंखों में

पनपते एहसास को

कई बार महसूस किया मैंने ..!

बातों में

मेरा जिक्र ..

ना होने के बाद भी

अपना वजूद

महसूस किया मैंने ...!

अजीब सी

मनोदशा के साथ ..

फूलों की पत्तियों को

अनकहे संदेशे

सुनाते ...

कई बार सुना मैंने ..!

पर स्वयं में

साहस जगा नहीं पाई ..!

जिन एहसासों की डोर में

बंधने लगा था मन

उसे मजबूती से

थाम नहीं पाई ...!


सुन के अनसुना करना ही

सही लगा ...!

स्वयं को जगाना है

ये नहीं लगा ....!

बहुत मुश्किल से

संभाला है खुद को...!

कठोर पत्थर सा

ढा़ला है खुद को ...!

छू न जाए कहीं

किसी के शब्द मुझ को ..

इसलिए

तंग रास्तों से

निकाला है खुद को ...!


चाह कर भी

परिधि अपनी

तोड़ नहीं पाती ..!

बोलना हँसना

चीखना चाहूं भी तो

आवाज़ घुट जाती ...!

नियति है शायद मेरी

खुद में जीना ..!

रहूं ज़रूर ज़हन में

पर कहीं... दिखूँ ना.....!



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