कैसा प्यार ?
कैसा प्यार ?


तुम्हारे चुने रास्ते पर
कदम दर कदम
बढ़ते चले गए
तुम्हारी कहीं बातों को
मन से आत्मा तक
उतारते चले गए
तुम्हारे बुनें ख्वाब ही
अपनी बंद पलकों में
पूरते चले गए
आज इस मुकाम पर
जिंदगी की शाम पर
तुम जो हाथ छोड़ दो
जिंदगी की जिंदगी से
तुम जो डोर तोड़ दो
तब भी गुनहगार हम
जीतते तो सिर्फ तुम
और चुने हार हम
फिर ये कैसे प्यार हम ?