रामायम ५५ अयोध्या को प्रस्थान
रामायम ५५ अयोध्या को प्रस्थान
सुग्रीव, नल, जाम्ब्बान अंगद
नील, हनुमान और विभीषण अब
कह ना पाए राम को कुछ वो
बस राम की और देखें सब।
अतिशय प्रेम देख राम ने
विमान पर चढ़ा लिया था सबको
उत्तर दिशा में था चलाया
गति पकड़ी थी उसने अब तो।
रघुवीर कहें देखो, हे सीते
रणभूमि में जगह दिखाएं
रावण, मेघनाद, कुम्भकर्ण
कहाँ मरे वो सब बताएं।
बोलें, मैंने यहाँ पुल बांधा
रामेश्वर महादेव दिखाएं
शिव की जहां सथापना की थी
प्रणाम करके वो आगे जाएं।
जिस जगह निवास किया था
वन में विश्राम किया जहाँ पर
सब का नाम भी वो बताएं
सीता सुनें सब विस्मित होकर।
शीघ्र पहुंचे दण्डक वन में
अगस्त्य आदि मुनि जहाँ रहते
सब मुनियों से वो हैं मिलते
सब को वो प्रणाम हैं कहते।
चित्रकूट में आ गए फिर
वहां भी मुनि दर्शन वो पाएं
आगे चले मिलीं गंगा, यमुना
सीता जी से प्रणाम कराएं।
फिर पवित्र प्रयागराज दिखा
त्रिवेणी के दर्शन हुए तब
अवधपुरी को भी प्रणाम किया
त्रिवेणी पर स्नान करें सब।
हनुमान को तब समझाया
तुम ब्राह्मण का रूप धरो अब
हमारी कुशल सुनाओ भरत को
उनका भी समाचार लाओ सब।
भरद्वाज जी के पास गए प्रभु
विमान में चढ़कर फिर चले आगे
निषादराज सुना प्रभु आये
चले आये वो भागे भागे।
गंगा तट पर विमान था उतरा
सीता गंगा की आरती गायें
निषादराज आ गए वहां पर
राम उनको ह्रदय से लगाएं।
