मैं नारी
मैं नारी
एक बंधन मैं बंधकर
जाने कितने बंधन मैं बंध गयी
प्यार के मोती पिरोते हुए,
घर संसार में दुनिया बसा गयी
मैं नारी एक ऐसी
जो खुद की पहचान भूल गयी।
मीठे रिश्तों के गुलदस्तों से
अपना परिवार सवार गयी
पर उन खुशियों के गुलों में
अपने ही फुल चुनना भूल गयी
मैं नारी एक ऐसी
जो खुद को खुद से भूल गयी।
अफ़सोस नहीं कोई गम नहीं
अधूरे ख्वाब जो पीछे छोड़ गयी
अन्जाने में दिल के रस्ते
खुद के सपने सजाना भूल गयी
मैं नारी एक ऐसी
अपने ही दर्पण में
अपनी पहचान भूल गयी।