“गुरु”
“गुरु”
बिन गुरु लागे जीवन है अधुरा,
गुरु हर रिश्ते का आधार है।
कभी समय बनकर
हर बाधा में जीना ये सिखलाता है।
तो कभी स्वयं का स्वयं से परिचय है करवाता।
कभी मात पिता बनकर
वात्सल्य, प्रेम,त्याग समर्पण सिखलाता है।
तो कभी सच्चाई का पाठ ये पढाता।
बिन गुरु लागे जीवन है अधुरा
गुरु ही करता विद्या का विस्तार है।
भाई, बहन, संगी, साथी बनकर
प्रतिपल छाया जैसा साथ ये दि खलाता है।
धैर्य, विश्वास और समझ है सिखाता
शिक्षक बनकर
अंधकार से ज्ञान प्रकाश ये दिखलाता है
तो राष्ट्र नव निर्माण है सिखाता।
कभी प्रकृति बनकर
दूजों के लिये जीना ये सिखलाता है।
हर तरफ ख़ुशियाँ है दिखाता
बिन गुरु लागे है जीवन अधुरा
गुरु ही देता जीवन को नव आकार है।