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Indu Barot

Classics

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Indu Barot

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राखी...

राखी...

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राखी का पावन पर्व मैं कोसों दूर होकर ही मनाती हूं,

दूर हूं तो क्या हुआ ह्रदय में तो तुम्हे पाती हूं।


जीवन पथ पर चलते कभी जब मैं ठोकर खा जाती हूं

सर ऊंचा कर देखूं तो साथ खड़ा तुम्हे पाती हूं।


मन में बहती स्नेह गगां को माना मैं नहीं दिखा पाती हूं

पर पता है मुझको ह्रदय मे आपके अपार स्नेह मैं पाती हूं।


रहो सदा खुशहाली में बस यही सदा मैं चाहती हूं

रहे भविष्य उज्ज्वल आपका ईश्वर से यही मांगती हूं।


राखी का पावन पर्व आज मैं कोसों दूर होकर ही मनाती हूं।


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