सम्राट चंद्रगुप्त विक्रमादित्य
सम्राट चंद्रगुप्त विक्रमादित्य
जिसे कहते भारत का गौरव
आज उस सम्राट की गाथा कहता हूं
स्वर्णभूमि जो सुख-समृद्धि की
महिमा उस अमरावती की गाता हूं।।
विश्व का केंद्र जो विश्व की धुरी थी
जिसे उज्जयिनी नगरी कहता हूं
कीर्ति सौरभ जिसका चहुँ ओर था फैला
उसे महाकाल से रक्षित पाता हूं।।
स्वर्ण-रजत मोती-माणिक की न कमी जहां पर
धन-धान्य से राजकोष को भरा मैं पाता हूं
सच्चा परितोष थे नगर के तब
उन्हें संज्ञा नवरत्न से सुशोभित पाता हूं।।
पहचान करता सच्चा जौहरी हमेशा
अतुलनीय-अनमोल सम्राट उन्हें मैं कहता हूं
हर क्षेत्र में महारत हासिल
जिनकी न तुलना किसी से पाता हूं।।
ज्ञान-ध्यान में महान समय के
जिनके नवरत्नों को अनुपम कहता हूं
एक से बढ़कर एक थे सारे
निखारने हुनर को उनके सबके मैं राजा को श्रेय सब पाता हूं।।
प्रधान चिकित्सक धन्वंतरी जिनके
जिन्हे अद्भुत आयुर्वेद का ज्ञाता कहता हूं
रोग-बीमारी टिक नही सकती
जानकर हर औषधियों का जिनको पाता हूं।।
मां सरस्वती कृपा जिन पर करती
लेखनी कालिदास की चमत्कारी मैं कहता हूं
अंतहीन कीर्ति अद्भुत रचनाएं
उनसे ऐसे काव्य,नाटकों का संग्रह मैं पाता हूं।
पत्रकौमुदी विद्यासुंदर के लेखक,वररुचि
जिन्हे महान कवि अनोखा कहता हूं
तान छेड़ते अतुलनीय ऐसी
मंत्रमुग्ध सभी को पाता हूं।।
विख्यात थी जिनकी ज्योतिष गणना
वराहमिहिर की प्रशंसा कहता हूं
शोध निरंतर करते रहते
मजबूत ग्रह-नक्षत्रों पर पकड़ मैं उनकी पाता हूं।।
किस्सा-कहानी से समस्या सुलझाते
कथा वेताल पञ्चविंशतिका की कहता हूं
भूत-पिशाच व माया के स्वामी
वेताल भट्ट को पाता हूं।।
यमक काव्य के पंडित कहलाते
कवि विलक्षण घटकर्पर को कहता हूं
सुंदर रचनाएं उनकी नीतिसार में
आज भी आनंदित पाठक को पाता हूं।।
नीति शास्त्र के महाज्ञानी जो
जिन्हें धर्मशास्त्र का रक्षक कहता हूं
अनेकार्थध्वनिमंजरी के जो रचियता
उन्हे क्षपणक सिद्ध मुनि दिगंबर कहते हूं
ओजपूर्ण वाणी के महान पुरुष जो
उनके जैसा न कहीं पाता हूं।।
मंत्रोच्चारण में प्रवीण रही
जिन्हें ज्योतिष साहित्य की ज्ञाता कहता हूं
बहुमुखी प्रतिभा की धनी कहलाती
स्वामिनी शंकु माता जिन्हें पाता हूं।।
सचिव बन जो संरक्षण पाते
संस्कृत पंडित अमर सिंह को कहता हूं
विलक्षण कवि जो सम्राट के प्यारे
उनकी अमूल्य नवरत्नों में जगह में पाता हूं।।
ज्ञान-कला-विज्ञान के रक्षक
जिनका साहित्य-ज्योतिष उच्च स्तर का कहता हूं
स्वर्णिम युग था वो भारत का
मिली उपलब्धि तब भारत को, सोने की चिड़िया पाता हूं।।
न्याय किए थे जो देवी-देवता
शिकार उन्हें शनिदेव के प्रकोप का कहता हूं
धर्म से अपने डिगे कभी न
उन सम्राट को न्याय की मूर्ति पाता हूं।।
याचक बन आते जग-जहान से
उनकी प्रतिभा की प्रभा कहता हूं
दिग दिगांतर प्रकाशित रहेगी
उन चंद्रगुप्त विक्रमादित्य की महिमा गाता हूं।।
