ऐ चाँद
ऐ चाँद
स्याह रातों के
कितने राज़
अपने सीने में
दफ्न किये
सदियों से
ख़ामोश खड़े
हो तुम
आसमानी इस
पैरहन में
मेहबूब की
की निशानी
की तरह
हीरे से जड़े
हो तुम
ए चाँद
कितने खामोश खड़े
हो तुम.....
बादशाह भी आए
सूरमा भी आए कई
मिट्टी से बने हुये
मिट्टी में मिले यहीं
दिल के वो इतने
छोटे
और कितने बड़े
हो तुम
ए चाँद
कितने खामोश खड़े
हो तुम.....
विधि ने बांधी
समय की रेखा
इसके आगे
कौन गया है
इसके पीछे
किसने देखा
समय से किंतु परे
हो तुम
ए चाँद
कितने खामोश खड़े
हो तुम.....