सच्चा रावण दहन
सच्चा रावण दहन
अहंकार ही सबसे बड़ा दुश्मन है इंसान का
कभी प्रगति पथ पर आगे बढ़ने नहीं देता।
अहं की तुष्टि करते, मानव विवेक भी खोता।
अहंकारी मानव सदा देखता बुराई दूसरों में,
अच्छाई दिखे नहीं, अहं की पट्टी नेत्र पर लगा।
करता नहीं भला किसी का,अपना कैसे होगा भला।
जीत कभी मिले तो खूब इठलाए, गुरूर बढ़ जाता।
उलटे सीधे काम करके अपनी इज्जत खुद ही गंवाता,
कोसों दूर भागते उससे सभी,फर्क न उसे कुछ पड़ता।
अंदर के रावण को न कभी मिटाने की कोशिश करता।
दशहरा के दिन खूब मज़े से पुतला रावण के फूंकता।
काश अपने अहंकार रूपी रावणत्व का भी दहन करता!
राम के गुण अगर अपने अंदर समाहित कर लें सब,
सतयुग लौट कर आएगा,यह कहते हैं अब तो रब!
रामत्व को जगाएं, अहंकार रूपी रावणत्व का दहन होगा तभी।