देवी ब्रह्मचारिणी
देवी ब्रह्मचारिणी
क्षीरोदधिजाता हे भगवती महामाया
अपार महिमामयी परब्रह्ममयी,
विधि आदि शक्ति अक्षरा नित्या
हे मॉं दुर्गा, हुआ आविर्भाव धरा पर।
उष्ण कमलवर्णा निज देह संभवा
आलोक शतदल कमल विकसित,
तव आविर्भाव से हुई धरणी प्राणमयी
शक्तिमूर्ति सनातनी नारायणी नमोस्तुते।
लोचनत्रय भूषितं विश्वेश्वरी
कठिन तप कर अपर्णा कहलाईं,
विश्वेशवन्द्या हुई देवी ब्रह्मचारिणी
देवी प्रसीद लोका वरदा भव ।
देवी मॉं प्रपन्नार्ति हारिणी हैं
जिन्हें ना तो समझा जा सकता है,
ना सीमा में बॉंधना जा सकता है
वे ही विद्यमान हैं, वे ही गतिमान हैं।