।।राम वन गमन।।
।।राम वन गमन।।
सिर नवा के चरण में पिता के,
राम जी देखो वन को चले हैं।
साथ लक्ष्मण जी उनके लघु भ्राता,
सेवा चरणों की करने चले हैं।
तनिक न उदासी न गम है,
मधुर मुस्कान चेहरे में छाई।
छू कर चरण मातु के फिर,
संग सीता के चले रघुराई।
संग माता सीता के रघुवर,
वसन पीत धारण किए हैं।
खड़े संग लक्ष्मन जी उनके,
धनुष हाथों में संभाले हुए हैं।
अश्रुपूरित नयनों से जनता,
संग चलने की खुद कह रही है।
रहेंगे जहाॅ॑ प्रभू हमारे,
वहीं रहने को मचल वह रही है।
आदेश मुझको हुआ वन गमन का,
सबको समझा यही प्रभू रहे हैं।
ख्याल रखना भरत का सब मिल के,
हम तो वन को अब जा रहे हैं।
छोड़ रोता बिलखता सभी को,
सीता लक्ष्मण संग वन को चले हैं।
लौट आना प्रभू जल्द अयोध्या,
नगरवासी सभी कह रहे हैं।