शब्द मेरे साथी
शब्द मेरे साथी
पंक्ति दर पंक्ति सफ़ेद " शब्द "जब पन्नों पे चलते हैं
मेरे दिल का हर राज़ लेते हुए नील स्याह बन गिरते हैं
अभी तक जो कच्चे से बंद थे शांत मेरी ओट में
वो बाहर आके अपनी चेतना से आकार में ढलते हैं
वो आपस में जुड़ कर अपना अर्थ मुझे समझाते हैं
"तुम तो ख़ुद से बोलना पाओगी कभी"
ये कहकर मुझे बार बार अब चिढ़ाते हैं
मैं भी बुरा नहीं मानती क्यूंकि ये ही तो मेरे हथियार हैं
मेरे सच्चे साथी हैं ये ,जब कहूं चलने को तैयार रहते हैं
और ..
जाने कैसे मेरे हर भाव को गुणी बन सबको दिखाते हैं
कब कहां क्या लिखना है, ये अब पल में समझ जाते हैं
किसी की तारीफ़ या कटाक्ष का दोष ये खुद पे ले लेते हैं
मुझे महफूज़ रखते हैं यूं कह के तुम बस चुप रहो
तुम्हारे मन की भाषा हम सबको बतलाने का
हम साहस उठाते हैं..
देखो ... ये शब्द ...ये मेरे शब्द..मेरे कितने अपने हैं
धीरे धीरे पाल रही हूं इनको कि मेरे लिए कीमती हैं ये
मेरे हर सुख दुःख का बयां कितनी आसानी से कर जाते हैं
पंक्ति दर पंक्ति सफ़ेद " शब्द "जब पन्नों पे चलते हैं
मेरे दिल का हर राज़ लेते हुए नील स्याह बन गिरते।