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Nalini Sai

Classics

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Nalini Sai

Classics

माँ

माँ

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भटक रही थी मैं सारे आसमान में 

भरा हुआ था अधूरा अरमान दिल में 

मेरा न जिस्म था न कोई अस्तित्व,

मन ढूंढ रहा था एक आशियाना।

तब तेरा बुलावा सुनकर आई ,

पाई तेरे गर्भ में ठिकाना।


अपने अस्तित्व से गढ़कर,

तूने दिया मुझे नूतन स्वरूप।

धड़कना सिखाया मेरे हृदय को,

फिर सिखाया उठना-बैठना, चलना बोलना।


मेरे अरमानों को पंख लगाकर

उड़ना भी सिखाया,

उन्ही पंखों के सहारे

तेरे गर्भ से पवित्र धरती पर आई हूँ।

दुनियां में फैल रहीं हूँ


मेरी माँ !

सारे संसार के नज़र में होगी तू

कोई और ही

मगर भगवान से कम नहीं तू

मेरे लिए !


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