माँ
माँ
भटक रही थी मैं सारे आसमान में
भरा हुआ था अधूरा अरमान दिल में
मेरा न जिस्म था न कोई अस्तित्व,
मन ढूंढ रहा था एक आशियाना।
तब तेरा बुलावा सुनकर आई ,
पाई तेरे गर्भ में ठिकाना।
अपने अस्तित्व से गढ़कर,
तूने दिया मुझे नूतन स्वरूप।
धड़कना सिखाया मेरे हृदय को,
फिर सिखाया उठना-बैठना, चलना बोलना।
मेरे अरमानों को पंख लगाकर
उड़ना भी सिखाया,
उन्ही पंखों के सहारे
तेरे गर्भ से पवित्र धरती पर आई हूँ।
दुनियां में फैल रहीं हूँ
मेरी माँ !
सारे संसार के नज़र में होगी तू
कोई और ही
मगर भगवान से कम नहीं तू
मेरे लिए !
