लब्ज
लब्ज
लब्जो ने दादागिरी करने का शहुर सिखाया है लब्जो को ही
अब लब्ज ही ना माने अपनी जालसाजी तो कोई क्या करे
लब्जो से वफादारी बहुत की हमने मगर
होठो पर आते आते लब्ज दगाबाजी करे तो कोई क्या करे
लब्जो ने सराहा,लब्जो ने दाद दी, लब्जो ने दिलको रंगीन बनाया
अब लब्जो की रंगदारी ने बेहया बनाया हमे तो कोई क्या करे
लब्ज से लब्ज मिले तो फूलो की पंखुड़ियां बनी
अब लब्जो ने की आवारागर्दी तो कोई क्या करे
लब्जो से जन्नत, लब्जो से खुशमिजाजी
लहजा जो बदल गया, शर्मिंदगी उठानी पडी हमे तो कोई क्या करे
लब्जों से हर मौसम सुहाना, लब्जों से ही आतंक और प्रेम शायराना
अब लब्ज जो उतरे बेवफाई पर 'नालंदा ' तो कोई क्या करे।

