किसी कोने में आज भी
किसी कोने में आज भी
मेरे घर के किसी कोने में आज भी
तेरी यादों का गुलदस्ता है,
तू आकर बैठता था जिस सोफे पर
उसपर तेरी यादों की तस्वीर है,
वो खिड़की जिसके पास खड़ा होकर
तू मुझको निहारता था,
वो खिड़की असज भी तुझको याद
करती है हमसे सवाल करती है,
वो दीवारे जिनको कभी तूने छूआ था
वो तेरे हाथों को पहचानती है,
जब भी हम तन्हा होते है वो हमसे
तेरे लिए कई सवाल करती है,
मेरे दिल पर तो तेरा कब्ज़ा था ही
मेरे घर का साजो समान भी तुझको
पहचानता है,
जिंदगी की राहों पर चलते चलते गर
तुम कभी आओगे तो,
इनको तुम इनके सवालो का जवाब
खुद ही दे देना,
इनके किसी सवाल का जवाब हमारे पास
तो नहीं है ।
