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Madhavi Sharma [Aparajita]

Romance Classics

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Madhavi Sharma [Aparajita]

Romance Classics

प्यार

प्यार

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प्यारहाँ हुआ था कभी

मुझे भी प्यार

ट्रेन में एक बार

उसकी वह प्यारी आँखें

आज भीभुलाए नहीं भूलती

सामने की बर्थ परवह बैठा था


एक टक मुझेताक रहा था

बहुत सारी बातें हुईहम दोनों मेें

जब तक हमसोए नहीं

सुबह जब आँखे खुलीं

मेरा स्टेशन आ चुका था

वह डबडबाई आँखों से


मुझे जाते हुए देख रहा था

आया नहींं जब कुछ मेरी समझ में

तो जल्दबाजी में मैंने

अपने बैग से पैन निकाला

और उसके हाथों पर


लिख दिया अपना नंंबर

फिर गंतव्य पर उतर गई

बहुत दिनों तक करती रही

उसके फोन का इंतज़र

परंतु शायदउसके मां-बाप ने

ज़रूर नहीं समझाफोन करना


क्योंकि प्यार तो

उनके छोटे से बच्चे ने

किया था मुझसे उन्होंने नहीं

फिर वह क्या समझते

होता क्या है प्यार व्यार।


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