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Madhavi Sharma [Aparajita]

Others

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Madhavi Sharma [Aparajita]

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बूँद

बूँद

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बारिश की बूँदों से.. 

प्रकृति होती संपन्न है..

अंसुवन की बूँदों से.. 

भीग जाता ये मन है..

दोनों जब हो बेकाबू.. 

कर जाते हैं हदें पार..

बहुत कुछ हो जाता.. 

तब तहस नहस है..

ऊपर बाढ़ आता है तो.. 

अंदर सैलाब है आता..

अपने साथ बहुत कुछ.. 

जो है बहा ले जाता..!!


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