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Shubham Kumar

Romance

4.2  

Shubham Kumar

Romance

श्री वानी

श्री वानी

1 min
326


मैं प्यार तुमसे ही करता हूँ 

न जाने क्यों ये कहने से डरता हूँ 

दूर से ही, सही अक्सर देखा करता हूँ

फिर पास आने से क्यों डरता हूँ 

लगता है खुद को खोने से डरता हूँ


ये डर कोई जख्म दे मुझे

इससे पहले तू हौसला दे 

ये मेरी कहानी कहों या प्यार की दास्ताँ, 

मैंने वही लिखा जो मेरे दिल ने कहा 

विश्वास नहीं होता है कि मैं अपने

वक्तव्य से मुकर गया,


आखिरकार किसी हसीना के प्यार में खो गया 

वक्त ने नहीं मैंने खुद को रोका है, 

क्योंकि लगता है प्यार अक्सर एक धोखा है 

ऐक युद्ध चलता है मन में,

क्या तुम वही हो जिसे देखा था मैंने

आँखें बंद कर उस चांदनी रात में।

 

जिसे मान लिया था मैं अपना,

शामल रंग था जसका,

संस्कारों की भंडार थी,

चाँदनी मुखरा वाली आमाशय में भी चमकती थी 

अंधेरे से दूर था मैं जब मैं उसके नजदीक था 


सूर्य की पहली किरण की

एहसास वो दिलाती थी 

क्या वो तुम्हीं हो जिसकी

याद अक्सर मुझे आती है।


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