Shubham Kumar

Abstract

4.1  

Shubham Kumar

Abstract

द ट्रुथ

द ट्रुथ

1 min
72


एक कली दिखी बाग में, पूरा जमाना गुलशन नजर आया।

वो हवा था प्यार का, वक्त हवा सा गुजरने लगा।

एक ठंढ हवा का झोका आई, उस वक्त में हलचल सी मचाई,

तब जाकर आखें खुली, असल दुनिया नजर तब आई ।

कली से फूल फिर पतझड़, ये दुनिया रेगिस्तान नजर आई।

बेवफाई हम खुद से कर बैठे, हवाओं कि रुख़ को बदल बैठे।

वो कली किसी और बाग में खिलती नजर आई, इस लिए मुस्कुरा बैठे।।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract