सफलता के लिए आत्मदर्शन
सफलता के लिए आत्मदर्शन
सफलता दूसरे की देखी
दुर्योधन सा वो हो गया
जल भुन कर वो बैठ गया
रुसा रुसा सा हो गया
ईर्ष्या खा जाती है सब कुछ
मन, बुद्धि, कार्यकलापों को
आदमी समझ ही नहीं पाता
अपने पुण्यों और पापों को
जिसको देखें सफल आप
बधाई देवें, करें उससे बात
उसका राज लगेगा पता
जब उससे करेंगे मुलाक़ात
अगर सिर्फ पैसा ज्यादा है
तो ये कोई बड़ी बात नहीं
पर अगर कीर्ति है फैली
तब तो हैं हालात सही
जलन में न जलें आपके भी
हालात बदलेंगे मेहनत से
कभी कभी लोग होते गुलाम
मुक्त न हो पाते लत से
ये सब कहना तो आसान है
करना मुश्किल, है सच्ची बात
अक्सर मेरे जैसे लिखने वाले
खुद भी सामने पाते ऐसे हालात
वैसे लिखने से कुछ होता है
आत्म दर्शन कविराज को भी
दुर्योधन को मारना ही पड़ेगा
पाण्डव जीतेंगे युद्ध तभी
अब मुझको ये गुर पता लगा
जबसे आपसे हुआ मुखातिब
सफलता की मंजिल नज़र आई
मेरे संग बने रहियेगा मेरी जानिब